राजस्थान का कोटा शहर अपने ‘एजुकेशनल हब’ कि छवि के लिए पूरे भारत में विख्यात है और अपने इस छवि को बनाए रखने के लिए हर साल JEE और NEET के परीक्षा में अपने अद्वितीय परिणामों के माध्यम से दहाड़ता भी है, मानो कहता हो कि ये परीक्षाएं अगर एक जंगल है तो कोटा इसका शेर। इस जंगल में कोटा के बादशाहत को चुनौती देने वाला शायद ही कोई हो और इसलिए इसके दहाड़ की गूंज पूरा हिंदुस्तान सुनता है लेकिन ऐसा नहीं है कि कोटा में सिर्फ मेडिकल और इंजीनियरिंग वाले बाघ और शेर मिलते हैं। कोटा ने अपने आंचल में मुकुंदरा टाइगर रिजर्व के भीतर असली वाले बाघ को भी जगह दी है। आपको कभी कोटा के एजुकेशनल दहाड़ के अलावा असली बाघ के दहाड़ को सुनना हो, तो एक बार मुकुंदरा घूमना तो बनता है।
यहां आने के लिए आपको पहले कोटा के प्रसिद्ध हैंगिंग ब्रिज आना होगा जो कि कोटा से चितौड़गढ़ की तरफ जाने वाली NH-12 का हिस्सा है। हैंगिंग ब्रिज पार करने के बाद आपको बाईं ओर गरड़िया महादेव मंदिर का बोर्ड दिखेगा… वहां से करीब 5km भीतर के तरफ आइए और फिर कुछ दूर दाहिने तरफ चलने पर आपको मुकुंदरा टाइगर रिजर्व की चौकी नजर आएगी जहां आपको मामूली शुल्क पर टिकट लेना होगा और फिर आप कर सकते है बाघ का दीदार!
लगभग 760 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस क्षेत्र का नामकरण मुकुंदरा के पहाड़ियों के नाम पर हुआ तथा इन पहाड़ियों का नामकरण कोटा के प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी हाडा शासक मुकुंद सिंह के नाम पर हुआ था। अभ्यारण्य की स्थापना सन् 1955 में हुई थी, तब इसका नाम ‘दर्रा वन्य जीव अभ्यारण्य’ था। साल 2004 में इसका नाम ‘राजीव गांधी नेशनल पार्क’ कर दिया गया और फिर 2006 में इसका नाम वसुंधरा सरकार ने ‘मुकुंदरा हिल्स पार्क’ रखकर राष्ट्रीय उद्यान का स्तर प्रदान करने का प्रस्ताव पारित किया परंतु इस प्रस्ताव को केंद्र ने मंजूरी नहीं दी। इसे राष्ट्रीय पार्क का दर्जा देने के लिए 9 जनवरी 2012 को अधिसूचना जारी की गई जिसमें जवाहर सागर अभयारण्य, चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य तथा दर्रा अभयारण्य के कुछ भाग को मिलाकर राष्ट्रीय उद्यान बनाने की घोषणा की गई और 10 अप्रैल 2013 को इसे टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। यह राजस्थान का तीसरा टाइगर रिजर्व है जो कि राजस्थान के 4 जिलों कोटा, बूंदी, झालावाड़ और चित्तौड़गढ़ में फैला हुआ है। यह राजस्थान का एक मात्र नेशनल पार्क है जो नदी के किनारे स्थित है और यहां का घना जंगल, पहाड़, सदानीरा चम्बल और प्रकृति की गोद में पलते सैकड़ों प्रजाति के वन्यजीव सहित बहुत सारे अन्य कारक ऐसे हैं जो इसे बाघों की बसावट के लिए सुरक्षित और मुफीद जगह बनाते हैं। इन्हीं संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए 18 नवंबर 2018 को यहां रणथंभौर नेशनल पार्क से एक बाघ को लाया गया जिसके साथ ही मुकुंदरा के क्षेत्र में पहली बार बाघ की दहाड़ सुनाई दी, जिसका आयाम आने वाले सालों में और मजबूत होने की उम्मीद है।
मुकुंदरा रिज़र्व का नजा़रा बरसात के महीनों में और सुंदर हो जाता है। यहां शुष्क, पतझड़ी वन पाया जाता है जिसमें तेंदू, पलाश, बरगद, पीपल, महुआ, बेल, अमलताश, जामुन, नीम, इमली, अर्जुन,कदम, सेमल, आंवला आदि के वृक्ष पाए जाते हैं। यह अभ्यारण्य धोकड़ा वनों के लिए भी प्रसिद्ध है। ऐसा नहीं है कि मुकुंदरा आकर आप सिर्फ बाघ के दहाड़ने कि आवाज सुन सकते हैं, यहां आपके दिल को जीतने के लिए एक से बढ़ कर एक आकर्षक चीज़े हैं। यहां के प्रमुख वन्य जीवों की बात करें तो यहां का ‘गागरोनी तोता’ काफी प्रसिद्ध है। यह एक विशेष प्रजाति का तोता है जो कि इंसान की आवाज की हूबहू नकल कर सकता है। इसका कंठ लाल रंग का होता है और पंख पर लाल रंग का धब्बा होता है। इसे हीरामन तोता तथा हिंदुओं का आकाश लोचन भी कहा जाता है। प्राचीन काल में इस तोते का उपयोग जासूसी करने हेतु किया जाता था। इसे वन विभाग ने झालावाड़ जिले का शुभंकर घोषित किया है। इसके अतिरिक्त यहां मुख्य रूप से घड़ियाल, भेड़िया, चिंकारा, सांभर, चीतल, नीलगाय, पैंथर, लकड़बग्घा, जंगली सूअर, तेंदुआ, दुर्लभ कराकल(स्याहगोश), लोमड़ी, खरगोश आदि जानवर भी पाए जाते हैं। यहां तकरीबन 225 तरह के पक्षियों की प्रजातियां भी पायी जाती है जिनमें अति दुर्लभ सफेद पीठ वाले व लम्बी चोंच वाले गिद्ध, क्रेस्टेड सरपेंट ईगल, शॉट टोड ईगल, सारस क्रेन, पैराडाइज फ्लाई कैचर, स्टोर्क बिल्ड किंगफिशर, कार्ड कार्ड स्कोप्स आउल, मोर इत्यादि प्रमुख हैं।
यहां स्थित अन्य प्रमुख पर्यटन स्थलों की बात करें तो रिजर्व में 12वीं शताब्दी का गागरोन का किला(झालावाड़), 17वीं शताब्दी का अबली मीणी का महल जो कि कोटा नरेश राव मुकुंद सिंह द्वारा स्थापित है, भैंसरोडगढ़ फोर्ट, 19वीं शताब्दी का रावठा महल(कोटा), गेपरनाथ, गराडिय़ा महादेव मंदिर, गुप्तकालीन मंदिर का खंडहर(भीमचोरी मंदिर), चित्तौड़गढ़ में हूणों द्वारा 8वीं-9वीं सदी में बनवाया गया बाडोली का प्रसिद्ध शिव मंदिर, मुकुंदरा पहाड़ियों में आदिमानव के शैलाश्रय इत्यादि हैं जो कि मुकुंदरा घूमने आने के क्रम में घूमा जा सकता है।
कोटा और उसके आसपास के क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मुकुंदरा एक उपयुक्त विकल्प है। ऐसा माना जाता है कि अगर यहां वाइल्ड लाइफ सफारी को बढ़ावा दिया जाए तो अगले 5 वर्ष में करीब 2000 करोड़ की नई अर्थव्यवस्था तैयार कि जा सकती है जिससे शिक्षा नगरी के साथ साथ पर्यटन उद्योग में भी कोटा को आगे बढ़ाया जा सकता है।
अगली बार जब भी कोटा आएं तो जरूर जाइए मुकुंदरा… शांत जंगल के बीच चिड़ियों कि मीठी चहचहाहट, सन्नाटे को भेदने वाली बाघ कि दहाड़, सैकड़ों तरह के जीवों और पक्षियों की समरसता और राजस्थान के अतुलनीय गौरवशाली इतिहास की एक झलक सहित ढेर सारे अनुभव एक साथ आपको देने के लिए मुकुंदरा बाहें खोले आपके स्वागत के लिए इंतजार में खड़ा है।
A Report by Devesh Kumar for IHOIK