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कोरोना की एक और वैक्सीन को मंजूरी, जानिए स्पूतनिक V की विशेषताएं

भारत में कोरोना के मामलों में बेतहाशा वृद्धि के साथ-साथ अलग-अलग राज्यों से वैक्सीन की कमी के खबरों से हलकान आम जनता के लिए रविवार को एक राहत की ख़बर आई। कोविशिल्ड और कोवैक्सिन के बाद अब स्पुतनिक V वैक्सीन को भी वैक्सीन मामलों की विशेषज्ञ कमिटी SEC के साथ साथ ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडीया की भी मंजूरी मिल गई है।

भारत में हैदराबाद स्थित डॉक्टर रेड्डीज लैब ने इस वैक्सीन के ट्रायल किये थे जिससे प्राप्त आंकड़ों के आधार पर भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल के समक्ष इसके आपातकालीन प्रयोग की मांग रखी गई थी। खबरों के मुताबिक सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी (SEC) ने इस वैक्सीन के ट्रायल आंकड़ो को तय मानकों के अनुरूप पाया है और इसके इस्तेमाल की अनुमति देने की अनुशंसा की है। इस मामले में आख़िरी फ़ैसला लेते हुए सोमवार के अहले सुबह ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की अनुमति दे दी है।

ज्ञात हो कि भारत में भारत बॉयोटेक की कोवैक्सिन और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी एवम एस्ट्राजेन्का के तत्वधान में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा निर्मित कोविशिल्ड वैक्सीन को पहले हीं आपातकालीन प्रयोग की अनुमति मिली हुई है। प्राप्त आंकड़ो के मुताबिक अब तब भारत में वैक्सीन के 10 करोड़ 45 लाख से भी अधिक डोज लगाए जा चुके हैं।

स्पूतनिक V का निर्माण गामालेया नेशनल सेंटर ऑफ एपीडेमियोलॉजी एन्ड माइक्रोबायोलॉजी तथा रशियन डाईरेक्टरेट इंवेस्टमेंट फंड के संयुक्त तत्वधान में हुआ है। ये कोरोना पर दुनिया का पहला रजिस्टर्ड वैक्सीन है जिसे 2020 के अगस्त महीने में रजिस्टर कराया गया था। निर्माताओं के मुताबिक ये वैक्सीन कोरोना रोकने में 91.6 फीसदी तक कारगर है वहीं कोवैक्सिन और कोविशिल्ड कि सफलता दर 80 प्रतिशत के आस-पास है। कुछ मामलों में स्पूतनिक V वैक्सीन लगाने के उपरांत बुखार, थकान, सरदर्द जैसे साइड इफेक्ट्स भी देखे गए हैं, पर जानकारों के मुताबिक इस वैक्सीन के साइड इफ़ेक्ट अन्य वैक्सीन के मुक़ाबले कम है। भारत से पहले कुल 59 देश स्पुतनिक V के आपातकालीन प्रयोग की अनुमति दे चुके हैं। बाजार में इस वैक्सीन के दो डोज की कीमत 10 अमिरिकी डॉलर यानी तकरीबन 750 रुपये होगी जो कि फाइजर और मोडर्ना क वैक्सीन के मुकाबले काफी कम है। इस वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान पर स्टोर किया जाना है और इसके दो डोज के बीच का अंतर 21 दिन का होगा।

स्पूतनिक V के प्रयोग की अनुमति मिलने के बाद भारत में दैनिक वैक्सीन उत्पादन क्षमता में उछाल आने की संभावना है जिससे मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को और कम किया जा सकेगा। साथ हीं, इस वैक्सीन के प्रयोग में आने से अन्य दो वैक्सीन निर्माता कम्पनियों (भारत बॉयोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) से भी दबाव घटेगा।

भारत में रूस के राजदूत निकोलय क़ुदशेव ने भी स्पूतनिक V के प्रयोग की संस्तुति पर हर्ष व्यक्त किया और इसको डीसीजीआई अप्रूवल मिलने की उम्मीद जताई।


हेल्थ डेस्क के लिए आशीष रंजन की रिपोर्ट।

COVID 19 Vaccination Registration To Begin; Check Eligibility And Process

The second phase of the Covid-19 vaccination drive in India has begun. It aims to cover 10 crore people across the country. So far, more than 1.5 core people have received Covid-19 shots.
States and UTs have been asked to keep a vaccination scale-up plan ready which includes the granular weekly and fortnightly plans for scaling up the vaccination sites both within the government and private facilities and also the number of vaccine doses administered.

Eligibility

People who are above the age of 60 and people within the age bracket of 45 to 59 years with specified co-morbidities are allowed to take the Covid-19 vaccine shots.
The government has released a list of 20 comorbidities that are covered for vaccination.

Here’s the list of 20 comorbidities:

1. Heart failure with hospital admission in past one year
2. Post cardiac transplant/ Left Ventricular Assist Device (LVAD)
3. Significant Left ventricular systolic dysfunction (LVEF < 40%) 4. Moderate or Severe Valvular Heart Disease 5. Congenital heart disease with severe PAH or Idiopathic PAH 6. Coronary Artery Disease with past CABG/ PTCA/ MI and Hypertension/ Diabetes on treatment 7. Angina and Hypertension/ Diabetes treatment 8. CT/MRI documented stroke and Hypertension/Diabetes on treatment 9. Pulmonary artery hypertension and Hypertension/ Diabetes on treatment 10. Diabetes (>10 years or with complication) and Hypertension on treatment
11. Kidney/Liver/Hematopoietic stem cell transplant: Recipient/ On wait-list
12. End stage Kidney Disease on haemodialysis/ CAPD
13. Current prolonged use of oral corticosteroids/ immunosuppressant medications
14. Decompensated cirrhosis
15. Severe respiratory disease with hospitalisations in last two years/ FEVI <50%
16. Lymphoma/ Leukaemia/ Myeloma
17. Diagnosis of any solid cancer on or after July 1, 2020 or currently on any cancer therapy
18. Sickle Cell Disease/ Bone marrow failure/ Aplastic Anemia/ Thalassemia Major
19. Primary Immunodeficiency Diseases/ HIV infection
20. Persons with disabilities due to Intellectual disabilities/ Muscular Dystrophy/ Acid attack with involvement of respiratory system/ Persons with disabilities having high support needs/ Multiple disabilities including deaf-blindness.

Registration Process

Registration will open on 1st March-2021

Please convey below message to your parents and other senior citizen members.

How to register for COVID Vaccine for senior citizen

◐ Use Co-Win app, Aarogya Setu app or log on to cowin.gov.in

◐ Enter your mobile number

◐ Get an OTP to create your account

◐ Fill in your name, age, gender and upload an identity document

◐ If 45+, upload doctor’s certificate as comorbidity proof

◐ Choose centre, date

◐ Up to 4 appointments can be made by one mobile number

Other options are also available for senior citizens who are not tech-savvy.

They can go to common service centres and get themselves registered.

A call centre number – 1507 – can also be availed for the same.

 

23 senior citizens die soon after taking Pfizer COVID-19 vaccine in Norway

In a worrying development, 23 elderly people died within a short time of receiving their first coronavirus vaccine shots in Norway. However, there is no confirmation yet if there is direct correlation between the Pfizer-BioNTech COVID-19 jab and these deaths.

Although a direct correlation between the Pfizer jab and these deaths is yet to be established, experts have said that 13 out of 23 people who died showed common side effects of mRNA vaccines such as diarrhea, nausea and fever.

The Norwegian Institute of Public Health has cautioned against vaccinating elderly people above 80 years of age saying those with a short life span may not benefit much from the jab. The Norwegian regulator further told Bloomberg, “For those with the most severe frailty, even relatively mild vaccine side effects can have serious consequences.”

Pfizer and BioNTech are working with the Norwegian authorities to investigate the deaths in Norway. According to Pfizer, the regulator discovered “the number of incidents so far is not alarming and in line with expectations”.

Experts are of the strong opinion that doctors need to exercise strong caution in vaccinating people in the wake of deaths of 23 elderly people. The Norwegian Medicines Agency said in a recent report that 21 women and 8 men reported side effects. Apart from the 23 deaths, nine people have reported serious side effects without fatal outcomes such as allergic reactions, strong discomfort and severe fever. Seven people reported less serious side effects such as severe pain at the injection site.

Meanwhile, Norway had administered at least one dose of the Pfizer or Moderna coronavirus vaccines to approximately 33,000 people by end of December.


 

किसान दिवस: नए कानून और किसानों की हालत

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में, जहां किसान सिर्फ और सिर्फ एक चुनावी मुद्दा बन कर रह गया है, वहां किसान दिवस की क्या अहमियत रह जाती है यह बताना तो मुश्किल है लेकिन वर्तमान समय में भी उस व्यक्ति कि एक बार चर्चा करना तो अनिवार्य है जिसने किसान और उससे जुड़े मुद्दों को कागजी फाइलों से निकाल कर संसद से लेकर सड़क तक एक ज्वलंत मुद्दा बना दिया। वह नेता जो किसानों के दिल के इतना करीब था, उनके मुद्दों से इतना जुड़ा हुआ था कि उसके जन्मदिन को देश ने किसान दिवस के रूप में मनाना शुरू कर दिया, हम बात कर रहे है भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और देश के खेत खलिहानों से निकल कर संसद तक का सफर करने वाले किसानों के प्रिये नेता, चौधरी चरण सिंह की। चौधरी चरण सिंह ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने किसान के जुड़े मुद्दों पर खुल कर बोलना शुरू किया और इसे चंद फाइलों से निकाल कर देश के राजनीतिक पटल पर कुछ इस तरह स्थापित किया कि आज भी देश का राजनीति और चुनाव बिना इस चूल्हे में अपने वादों की रोटी सेके आगे नहीं बढ़ पाता। हालांकि इसी सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि चरण सिंह ने इस मुद्दे को भले ही इसलिए मुख्य पर्दे पर लाया हो क्युकी वो उस परिवेश से भली भांति परिचित थे और अपने तरफ़ से किसानों के बेहतरी के लिए पूरा प्रयास भी किया हो लेकिन उनको इस बात का तनिक भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि किसानों का यह मुद्दा आने वाले दिनों में राजनीतिक दलों के सत्ता के भूख को मिटाने वाली एक रोटी मात्र बन कर रह जाएगी। चरण सिंह एक कांग्रेसी थे लेकिन इसके बावजूद भी पंडित नेहरू से उनके कई मुद्दों पर मतभेद थे और वो खुल कर कहा करते थे कि पंडित जी को किसानों के वास्तविक हालत और जमीनी हकीकत का तनिक भी अंदाजा नहीं है। यही नहीं जब पंडित नेहरू ने देश में सहकारी खेती को बढ़ावा देने का विचार किया तो चरण सिंह उनके विरोध में उतरने वाले सबसे मुखर आवाज थे, पंडित नेहरू को भी उनके कद का अंदाजा था और उन्होंने भी अपने इस विचार को जाने दिया। चरण सिंह कि विचारधारा आरंभ से ही शोषित,गरीब, मजदूरों और किसानों के हित से जुड़ी थी और इसका एक बहुत बड़ा प्रमाण तब मिला जब 1952 में उन्होंने जमींदारी उन्मूलन विधेयक पारित किया, इससे नाराज होकर उस समय करीब 27000 पटवारियों ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन चरण सिंह इससे घबराए नहीं, उन्होंने नए तरीके से पटवारियों कि भरती शुरू कि जिन्हें आज लेखपाल कहा जाता है, इसमें उन्होंने 18% सीट हरिजनों के लिए आरक्षित किया। चरण सिंह को देश भले ही एक मजबूत प्रधानमंत्री के रूप में याद न रखे लेकिन एक सशक्त किसान नेता कि उनकी छवि हमेशा बनी रहेगी। आज जब देश में किसान और सरकार आमने सामने खड़ी है ऐसे में किसानों को एक मजबूत नेतृत्व के लिए चरण सिंह कि कमी जरूर खल रही होगी, एक ऐसे नेता कि कमी जो अपने किसी भी व्यक्तिगत स्वार्थ को दरकिनार कर किसानों के मुद्दों और उनके हितों के लिए किसी भी चुनौती से टकराने का माद्दा रखता हो। देश में जब वर्तमान परिस्थिति ऐसी हो कि एक साल में (2019 में) देश ने 10,281 किसान आत्महत्या करता है, अर्थात प्रत्येक घंटे करीब 1 किसान, उनके मसलों को सिर्फ एक चुनावी मुद्दा से आगे बढ़ा कर मुखर रूप से देश के पटल पर रखने के लिए और उसके समाधान के लिए देश एक मजबूत किसान नेता के कमी को निश्चित ही महसूस कर रहा है।
देश कि संसद ने 20 सितंबर 2020 को 3 कृषि विधेयक को पारित किया जो अब कानून बन चुके हैं, देश के कई हिस्सों में इसका विरोध होना शुरू हुआ, इन कानूनों को लेकर दोनो तरफ़ से अपने अपने पक्ष रखे जा रहे हैं, सरकार का कहना है कि देश की तकरीबन 70% आबादी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से कृषि पर आर्थिक रूप से निर्भर है, इसके बाबजूद भी अर्थवयवस्था में कृषि का योगदान मात्र 16% है, अतः इसके योगदान को बढ़ाने के लिए एक ‘टोटल रिफॉर्म’ कि जरूरत है और ये सारे कानून इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, वहीं किसान संगठन इन कानूनों से अपने लिए पैदा होने वाले संकटों को लेकर आंदोलन कर रहे है। यह आवश्यक है कि दोनों तरफ के बातों को समझा जाए और फिर यह निर्णय लिया जाए की किस पक्ष को किस मुद्दे पर बात करनी चाहिए और किस प्रकार इस गतिरोध को खत्म किया जाए।
(1)कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, 2020—- यह कानून किसानों और व्यापारियों को अपना फसल APMC के मंडियों के बाहर देश के किसी भी कोने में बेचने को छूट देती है, बिना किसी रोक टोक के वे एक राज्य से दूसरे राज्य में जा कर अपना फसल बेच सकते हैं, किसानों के लाभ को बढ़ाने के लिए मार्केटिंग और ट्रांसपोर्ट खर्च को कम किया जाएगा, अगर किसान मंडी के बाहर फसलों को बेचता है तो उस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, किसान बिना किसी बिचौलिए के अपना फसल बेच सकते हैं, मंडियों के इतर किसान अपना फसल सीधे कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउस अथवा प्रोसेसिंग यूनिट वालों को बेच सकते है तथा इलेक्ट्रॉनिक व्यापार को बढ़ाने के लिए एक सुविधाजनक ढांचा का विकास किया जाएगा।
(2)कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020—- यह कानून देश में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए एक बेहतर और राष्ट्रीय स्तर कि प्रणाली बनाए जाने कि बात करता है, इसके तहत छोटे किसान भी किसी बड़े निर्यातक, व्यापारी, फार्म अथवा कोल्ड स्टोरेज वालों से कॉन्ट्रैक्ट लेकर कृषि कर सकते है जिसमे उनके फसल कि कीमत पहले से ही निर्धारित होगी, फसल कि कीमत बढ़ने कि परिस्थिति में किसान को भुगतान नए बढ़े हुए कीमतों पर किया जाएगा, इस प्रकार किसान बाजार के अनिश्चितता के खतरो से बाहर रहेगा और उसे बीज कि आपूर्ति, तकनीकी मदद और फसल बीमा इत्यादि आसानी से प्राप्त होगी। इसके अतिरिक्त किसी भी तरह के विवाद को 30 दिनों के भीतर SDM के द्वारा हल किए जाने कि व्यवस्था कि गई है और साथ ही कृषक उत्पाद समूह (FPO) का निर्माण किया जाएगा जो छोटे किसानों के हितों की रक्षा करेगा।
(3) आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020—- इस कानून के मदद से अनाज, दलहन, तेलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज को युद्ध, प्राकृतिक आपदा, दामों में अत्यधिक वृद्धि जैसी आपातकालीन स्थिति को छोड़ कर कभी भी मनचाही मात्रा में भंडारित किया जा सकेगा अर्थात अब इन सब को आवश्यक वस्तुओं के सूची से बाहर कर दिया गया है। सरकार का कहना है कि इससे कृषि के आधारभूत ढांचे में निवेश बढ़ेगा, एक बेहतर बाजार का विकास होगा जिससे खाद्य वस्तुओं के बर्बादी को कम किया जा सकेगा।
ये तीनों ही कानून अपने आप में बेहतर मालूम पड़ते है और ऐसा लगता है कि कृषि क्षेत्र के आधारभूत संरचनाओं में परिवर्तन के लिए बेहतर साबित होंगे, लेकिन ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर इन कानूनों का विरोध क्यों किया जा रहा है, ऐसे में तीनों कानूनों को लेकर किसान संगठनों के बीच जो डर है उन्हे समझना भी आवश्यक है, अतः यहां हम एक एक करके तीनों कानून को लेकर किसानों के रोष का कारण जानने का प्रयास करेंगे।

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, 2020

वर्तमान में FCI राज्य सरकार के साथ मिल कर बिचौलियों के मदद से मंडिया लगता है जहां किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपना फसल बेचता है। सरकार फसल कटने से पहले CACP के सिफारिश पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) कि घोषणा करती है, हालाकि सिर्फ 6% किसान ही अपना फसल MSP पर बेच पाते है। किसानों का कहना है कि नए कानून के आने से APMC कि मंडी बंद हो जाएगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य भी खत्म कर दिया जाएगा। बाजार में निजी कंपनियों के आने से शुरुआत में तो किसानों को फायदा होगा लेकिन कुछ समय बाद बाजार पर निजी कंपनियों का ही एकाधिकार हो जाएगा और वो अपनी मनमानी शर्तों पर बाजार चलाएंगे। किसानों का यह डर वाजिब इस कारण भी प्रतीत होता है क्युकी जब बाजार में निजी कंपनी आएगी तो वो बड़ी कीमतों पर फसल खरीदेगी और ऐसे में कोई भी किसान मंडी में अनाज नहीं बेचेगा जिससे मंडी व्यवस्था धीरे धीरे कमजोर होगी और अंत में उसका हाल वहीं हो जाएगा तो निजी टेलीकॉम कंपनियों के आने से बीएसएनएल का हो गया। वैसी परिस्थिति में बाजार निजी कंपनियों के द्वारा नियंत्रित किया जाएगा और वो मनमानी कीमतों पर फसल खरीद करेंगे। चुकी मंडी में बेचने पर टैक्स लगता है और नए कानून के मुताबिक बाहर बेचने पर टैक्स नहीं लगेगा, इसलिए सब कोई अपना फसल मंडी के बाहर ही बेचेंगे जिससे मंडियों का ढांचा कमजोर होगा और ये बंद होने के कगार पर पहुंच जाएगी। नए कानून में एमएसपी का जिक्र ना होने से किसान घबराए हुए है, हालाकि यह सच है कि एमएसपी कभी भी कानून नहीं था, सरकार स्वामीनाथन आयोग के सिफारिशों के अनुसार हर साल एमएसपी की घोषणा करती है, अब किसान चाहते हैं कि एमएसपी को लेकर कानून बनाया जाए जिससे ये सुनिश्चित हो सके कि निजी कंपनियां अपने मनमानी कीमतों पर फसल ना खरीद पाए।

कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020

इस कानून को लाकर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने कि बात कि गई है लेकिन किसानों का कहना है कि छोटे किसान,जिनकी संख्या भारत के कुल किसानों का लगभग 85% है, ये किसान प्रायोजकों से बात चीत करने में, अपनी राय रखने में तथा फसलों के खरीद बिक्री पर चर्चा करने में कमजोर होंगे, उनका ये भी कहना है कि बड़ी कंपनियां शायद छोटे किसानों को तबज्जों ना दे और चुकी मंडी बंद होने का डर उन्हें है ही, ऐसे में छोटे किसानों के पास अपनी फसल कम कीमत पर या यूं कहे कि कंपनियों के शर्तों पर बेचने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होगा, साथ ही किसी भी तरह के विवाद के परिदृश्य में किसानों के मुकाबले प्रायोजक मजबूत स्थिति में होंगे। चुकी विवादों के निपटारे के लिए एसडीएम के पास शिकायत करने का विकल्प दिया गया है लेकिन किसानों को डर है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी कंपनियां और अधिकारी आपस में मिली भगत करके किसानों के हक को दवा सकते है ऐसे में विवादों के निपटारे का कोई ठोस विकल्प किसानों के सामने नहीं सूझता है।

 आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020

इस कानून के मदद से अनाज, दलहन, तेलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं के सूची से बाहर रखा गया है और सामान्य दिनों में इनका अब किसी भी हद तक भंडारण किया जा सकता है, अब ऐसे में कंपनियां, कोल्ड स्टोरेज या वेयरहाउस वाले लोग बाजार को अपने हिसाब से नियंत्रित करेंगे, साधारण सी बात है जो बाजार पर नियंत्रण रखेगा वो दाम पर नियंत्रण करेगा, मनचाही भंडारण के सूरत में किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर किया जा सकता है साथ है बाजार में उन्ही सामानों को मनचाही कीमतों पर बेचा जा सकता है।
कई जगहों पर ऐसा कहा जा रहा है कि इन कानूनों का विरोध कुछ चुनिद्दा राज्यों में ही क्यों हो रहा है, उसका कारण यह है कि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान ये अब वैसे राज्य है जहां ज्यादातर किसान एमएसपी की कीमतों पर सरकारी मंडी में जा कर अनाज बेचते है, अतः उन्हें एमएसपी और मंडी का डर सबसे ज्यादा है और वे मुखर रूप से इसका विरोध कर रहे हैं। बिहार में इन मंडियो को खत्म करने से उत्पन्न दुष्परिणाम देश के सामने है, दूसरे राज्य के किसानों को भी ऐसा ही डर सता रहा है और इसी कारण से ये लोग तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने, एमएसपी के ऊपर कानून बनाए जाने, स्वामीनाथन आयोग के सिफारिश को पूरी तरह से लागू करने, एनसीआर और उससे जुड़े क्षेत्रों में एयर क्वालिटी मैनेजमेंट से जुड़े अध्यादेश को रद्द करने, कृषि कार्यों में उपयोग होने वाले डीजल के दाम में 50% कि कटौती करने आदि मांगो को लेकर देश भर में और विशेष कर दिल्ली से सटे सिंघू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं।
किसानों के आंदोलन के जवाब में सरकार के तरफ से कई तरह कि सफाई दी गई और बातचीत भी कि गई लेकिन अभी तक सभी कोशिश नाकाम ही साबित हुई है। सरकार का कहना है कि एमएसपी जारी रहेगी और इसके उपर वो लिखित में देने को भी तैयार है साथ कि एपीएमसी कि मंडी भी लगती रहती और किसान अगर चाहे तो एमएसपी पर अपनी फसल मंडी में भी बेच सकते है, नए कानून सिर्फ किसानों को अपना फसल बेचने के लिए नए रास्ते प्रदान करता है, इससे मंडिया बंद नहीं होगी। इसके साथ ही सरकार का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के सूरत में किसान फसल कि कीमत अपने अनुसार बिना किसी दवाब के तय करेगा और पैसों का भुगतान उसे 3 दिन के भीतर हो जाएगा, साथ ही छोटे किसानों के हितों के रक्षा के लिए किसान संगठनों का निर्माण भी किया जाएगा, इसके अतिरिक्त फसल खरीदने वाली कंपनियां खुद खेतों से फसल ले जाएगी किसानों को किसी भी प्रकार का का खर्च यातायात के साधनों में नहीं करना पड़ेगा और किसी भी प्रकार के विवाद के निपटारे के लिए स्थानीय स्तर पर पारदर्शी ढांचा का विकास किया जाएगा। हालांकि सरकार के इन वादों के बावजूद किसान संगठन अपनी मांग छोड़ने को राजी नहीं है और मजबूती से अपने मांगो को लेकर आंदोलन में डटे हुए हैं।
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार के कृषि कानून देश में पहली बार लाए गए है, इससे पहले साल 2017 में भी एक इसी तरह का कृषि कानून लाया गया था जिसमें साल 2022 तक किसानों कि आय दो गुनी करने के लक्ष्य से कई तरह के प्रावधान किए गए थे। लेकिन ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर इन नए कृषि कानूनों में ऐसा क्या हो गया कि अन्नदाता आज अपनी मांग को दिन रात एक कर के सड़क पर बैठा है। वह किसान जो चुनावी मौसम में एक ऐसा घोड़ा होता है जिस पर सवार हो कर हर कोई अपनी राजनीतिक महतवाकांक्षा कि रेस को जितना चाहता है, आज उसकी आवाज को दिल्ली के कानों तक पहुंच क्यों नहीं रही है? आखिर क्यों उसका भरोसा अपनी ही चुनी हुई सरकार और उसी सरकार द्वारा किसानों के हित कि बात कहकर लाए गए कानून पर नहीं है? यह निश्चित तौर पर सरकार और किसानों के बीच संचार कि कमी का परिणाम है। यह तय करने का वक्त नहीं है कि कौन अपने जगह कितना सही और कितना गलत है, यह समय है जल्द से जल्द किसानों और सरकार के बीच टूट चुकी भरोसे के बांध को फिर से खड़ा करने कि जो कि लगातार बातचीत से ही संभव है। यह बेहद आवश्यक है कि अन्नदाता और सरकार के बीच विश्वास कि डोर बंधी रहे। किसान अपने खेत में हल पकड़े ही अच्छा लगता है, दिल्ली कि सड़कों पर अपनी मांग के लिए हाथ उठाया हुआ बिल्कुल भी नहीं। सरकार जितनी जल्दी इनका विश्वास, भरोसा,यकीन जीत कर और आवश्यक कदम उठा कर इन्हे इनकी खेतों के तरफ भेज दे, देश के लिए उतना ही अच्छा होगा, बाकी चुनाव आते ही किसान हितों के बात कि चूल्हा तो फिर से गर्म होगी ही और आज किसानों के बिरयानी खाने से जिनको दिक्कत है वो भी और जिनको नहीं है वो भी, दोनों अपनी भूख मिटाने के लिए राजनीति कि रोटी इसी चूल्हे में सेकेंगे। बाकी हमारे और आपके लिए ये बेहद आवश्यक है कि हम अपनी भूमिका तय करे और इस पूरे प्रकरण में अपने आप को कहां खरा पाते है ये सुनिश्चित करे, इसलिए नहीं कि आज किसान दिवस है, इसलिए कि हमारे और आपके शरीर का एक एक बूंद खून इन किसानों के पसीनों से बना है। यह आवश्यक नहीं है कि सभी मुद्दों पर हम किसान के साथ खड़े हो या फिर सभी मुद्दों पर सरकार के साथ खड़े हो, आवश्यक ये है कि हम हितों के रक्षा में और सच के साथ हमेशा खड़े रहे।
जय जवान ! जय किसान !


Report By: Devesh Kumar

आम जनता को कब मिलेगी कोरोना की वैक्सीन?

भारत के प्रधानमंत्री ने शनिवार को हैदराबद, पुणे और अहमदाबाद में कोविड-19 के वैक्सीन निर्माण के प्रक्रिया का जायज़ा लिया। अहमदाबाद स्थित जाइडूश बॉयोटेक पार्क, हैदराबाद स्थित भारत बॉयोटेक लैब और पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में रिव्यू विजिट के दौरान प्रधानमंत्री ने विशेषज्ञों से टीकाकरण से जुड़े बारीक़ पहलुओं पर चर्चा की।

भारत समेत पूरा विश्व कोविड-19 की समस्या से जूझ रहा है और अब राहत की इकलौती उम्मीद वैक्सीन से ही है। अलग-अलग देशों में वैक्सीन के अलग-अलग चरणों का ट्रायल चल रहा है और एक्सपर्ट्स के मुताबिक जल्द हीं सफलता मिलने की उम्मीद है। संक्रमण के लगातार बढ़ते मामलों से त्रस्त आम जन के मन में सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर उन्हें कोरोना से निजात दिलाने वाली वैक्सीन कब मिलेगी?

अंडर ट्रायल वैक्सीनों की फेहरिस्त में जो पाँच वैक्सीन सफलता के सबसे करीब है, हमने इस रिपोर्ट में उनपर तफ़सील से जानकारी देने का प्रयास किया है।

MODERNA mRNA 1273

सूची में सबसे पहला नाम है MODERNA-mRNA 1273 का जिसका अमेरिका की ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एन्ड इन्फेक्शस डिजीज’ के सहयोग से ट्रायल चल रहा है। ह्यूमन ट्रायल के फेज में पहुंचने वाली ये कोरोना की पहली वैक्सीन है। तकरीबन 30 हज़ार अमेरिकी नागरिकों ने इसके ट्रायल के लिए अपना नाम दिया और कई स्टेज की ट्रायल्स के बाद आये आंकड़े उत्साहवर्धक है। बिना किसी साइड इफेक्ट वाली ये वैक्सीन ह्यूमन ट्रायल के दौरान 94.5 फीसदी तक कारगर रही। एक्सपर्ट्स के मुताबिक़ इस वैक्सीन के एक डोज की कीमत 35 अमेरिकी डॉलर यानी कि लगभग 2600 रुपये होगी। इस वैक्सीन के अमेरिकी बाज़ार में उतारे जाने के तारीखों का ऐलान होना अभी बाकी है।

Pfizer

इस सूची में दूसरी वैक्सीन है फ़ाइजर (Pfizer)। अमेरिकी फार्मा कम्पनी फ़ाइजर और जर्मन फार्मा कम्पनी बायो एन्ड टेक ने मिल कर इस वैक्सीन को तैयार किया है। स्वास्थ्य मामलों के जानकारों के मुताबिक इस वैक्सीन के सबसे पहले प्रयोग में आने की संभावना है। निर्माता कम्पनियों के मुताबिक ये वैक्सीन 95 फीसदी तक कारगर है और दिसंबर 2020 तक इसके 5 करोड़ डोज तैयार हो जाएंगे, वहीं अगले साल तक एक अरब तीस करोड़ डोज तैयार करने की योजना है। इस वैक्सीन के भारत पहुंचने को लेकर फिलहाल कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है साथ हीं इसके भंडारण के लिए आवश्यक बेहद कम तापमान को हासिल कर इसके सुचारू वितरण को सुनिश्चित करने की प्रक्रिया का सामने आना भी अभी बाकी है।

Sputnik V

इस फेहरिस्त में तीसरे स्थान पर है रूस की गामालेया नेशनल सेंटर ऑफ एपीडेमियोलॉजी एन्ड माइक्रोबायोलॉजी तथा रशियन डाईरेक्टरेट इंवेस्टमेंट फंड के संयुक्त तत्वधान में बन रही स्पुतनिक-V का। ये कोरोना पर दुनिया का पहला रजिस्टर्ड वैक्सीन है जिसे इसी साल अगस्त के महीने में रजिस्टर कराया गया था। निर्माताओं के मुताबिक ये वैक्सीन कोरोना रोकने में 92 फीसदी तक कारगर है। कुछ मामलों में वैक्सीन लगाने के उपरांत बुखार, थकान, सरदर्द जैसे साइड इफेक्ट्स भी देखे गए। हैदराबाद के डॉक्टर रेड्डीज लैब को भारत में इस वैक्सीन के ट्रायल की अनुमती मिली हुई है और भारत तथा रूस की सरकारें पूरी प्रक्रिया पर नजदीकी से नजर रख रहीं है। स्वास्थ्य मामले के जानकारों के मुताबिक इस वैक्सीन की कीमत अमेरिका के मोडर्ना वैक्सीन से कम होगी।

COVISHIELD

अब जानते हैं ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और स्वीडिश ब्रिटिश कम्पनी एस्ट्रॉजेन्का द्वारा बनाई जा रही वैक्सीन AZD1222 की। भारत में इस वैक्सीन को ‘कोविशिल्ड‘ नाम दिया गया है। इस वैक्सीन के निर्माण और ट्रायल की प्रक्रिया में पुणे स्थित ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ भी सहयोगी है। भारत में इस वैक्सीन के आख़िरी फेज़ का ट्रायल चल रहा है। भारत के साथ ही यूके, साउथ अफ्रीका, अमेरिका और ब्राज़ील में भी इस वैक्सीन का ट्रायल किया गया। ट्रायल से प्राप्त आंकड़ो के अनुसार ये कोरोना को अधिकतम 90 प्रतिशत तक रोकने में कारगर साबित हुई है, हालांकि इस वैक्सीन की औसत सफलता दर 70 फीसदी के करीब है। कई देशों में कई तरीके से हुए ट्रायल के वजह से औसत और अधिकतम सफलता दर के आंकड़ो में बड़ा अंतर नजर आ रहा है। जिन लोगों को वैक्सीन का पहला डोज आधा और एक महीने बाद दूसरा पूरा डोज दिया गया, उनमें वैक्सीन की सफलता का प्रतिशत 90 के करीब रहा पर जिन्हें एक महीने के अंतराल में दो पूरे डोज दिए गए उनमें वैक्सीन की सफलता का प्रतिशत गिर कर 62 रह गया। एस्ट्राजेन्का ने ब्रिटेन के ड्रग रेगुलेटर से 29 नवम्बर को वैक्सीन के आपातकालीन प्रयोग की इजाज़त मांगी है जिसपर आधिकारिक जवाब आना बाकी है। भारत में उपलब्धता की कतार में ये वैक्सीन सबसे आगे खड़ी हैं। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने इसके चार करोड़ से अधिक डोज तैयार कर लिए हैं। सीरम इंस्टीट्यूट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आधार पूनावाला के मुताबिक इस वैक्सीन के एक डोज की कीमत सरकार को तकरीबन सवा दो सौ रुपये (3 अमेरिकी डॉलर) और आम जनता को तकरीबन 600 रुपये पड़ेगी। सीरम इंस्टीट्यूट पहले भारत के वैक्सीन जरूरतों को पूरा करेगा फिर इसे अन्य देशों को निर्यात किया जाएगा।

COVAXIN

पूरी तरह से भारत में बन रही अगली वैक्सीन है कोवैक्सीन(COVAXIN). इसका निर्माण हैदराबाद स्थित भारत बॉयोटेक और ICMR की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी द्वारा किया जा रहा है। इसके पहले और दूसरे फेज के ट्रायल पूरे हो चुके हैं और तीसरे फेज के ट्रायल जारी हैं। इसके सभी स्टेज के ट्रायल्स अगले साल तक पूरे होंगे। भारत बॉयोटेक के एमडी डॉक्टर कृष्ण एला ने कहा है कि इस वैक्सीन के एक डोज की कीमत एक पानी के बोतल से भी कम होगी।

रेस में सबसे आगे चल रही इन पाँच वैक्सीन का भारत समेत तमाम देश बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। वैक्सीन के लांच की कोई तय तारीख नहीं है और यही बात प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में दुहराई पर सीरम इंस्टिट्यूट के सीईओ आधार पूनावाला के अनुसार दिसम्बर में भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल से वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की इजाजत मांगी जाएगी। इजाजत मिलने की स्थिति में सबसे पहले कोरोना से जंग में कार्यरत फ्रंट लाइन वर्कर्स, जो कोरोना मरीजों के सीधे संपर्क में आते हैं, को वैक्सीन लगाई जाएगी, उसके बाद सीनियर सिटीजन्स की बारी आएगी। पूनावाला आगे बताते हैं कि आम लोगों के लिए वैक्सीन के अप्रैल में उपलब्ध होने की उम्मीद की जा सकती है।

अलग-अलग प्रयोगशालाओं में अलग-अलग वैक्सीनों के पूर्णतः तैयार होने के बेहद करीब पहुंचने को मद्देनजर रखते हुए प्रधानमंत्री ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को वैक्सीन वितरण का खाका तैयार करने के निर्देश दिए हैं। कुल-जमा लब्बोलुआब ये की अप्रैल के पहले आमलोगों को वैक्सीन मिलना सम्भव नहीं है इसलिए कोरोना से जंग में सावधानी ही हमारा हथियार है। मास्क और हैंड सैनिटाइजर के प्रयोग से कोरोना को हराना सम्भव है और जब तक वैक्सीन आ नहीं जाती हमें इनके प्रयोग को लेकर कृतसंकल्पित होना होगा।


ihoik.com के लिए आशीष रंजन की रिपोर्ट